और कितने झूठ
और कितने बहाने
और कितने समर्पण
सहने होंगे
आखिर कब तक
होंठ गूंगे, आंखें अंधी,
कान बहरे होंगे
किसके
भीतर की धधकती आग
बनेगी सबके हकों की मशाल
मनुष्यता का भख लेती
दानवी ताकतों के विरुद्ध
राजनीति, अपने हितों से ऊपर उठकर
कौन हूंकारेगा, लडे.गा?
अपना पहला पग धरेगा
निनाद, जयघोष करेगा
भेदेगा चक्रव्यूह,
बनेगा अभिमन्यु
बचेगा और बचाएगा हमें!!
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