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05 June, 2010

अभिमन्यु

और कितने झूठ
और कितने बहाने
और कितने समर्पण
सहने होंगे

आखिर कब तक
होंठ गूंगे, आंखें अंधी,
कान बहरे होंगे

किसके
भीतर की धधकती आग
बनेगी सबके हकों की मशाल

मनुष्यता का भख लेती
दानवी ताकतों के विरुद्ध
राजनीति, अपने हितों से ऊपर उठकर

कौन हूंकारेगा, लडे.गा?
अपना पहला पग धरेगा
निनाद, जयघोष करेगा

भेदेगा चक्रव्यूह,
बनेगा अभिमन्यु
बचेगा और बचाएगा हमें!!

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