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22 June, 2010

पिता

पिता
तुम्हारे जाने के बाद
मैंने महसूसा
कितना जरूरी था मेरे लिए
तुम्हारा होना
तुम्हारा बिछौना
बात बात पर
रोकना, टोकना
कितना निश्चिंत
मुक्त था मैं
तुम्हारी छाया में
सुप्त था मैं
तुम चिता में चुपचाप
मैं चिंता में चुपचाप
तुम्हारा वह चिर मौन
कितना बोल रहा था
स्म्रतियों के कितने
अनगिन द्वार खोल रहा था
उन कुछ ही पलों में मैं
एक जीवन जी गया
कितनी खुशियां
वह एक आंसू पी गया
पिता!
अब मैं कभी नहीं सुन पाऊंगा
अपनी ही तरह का
मेरे लिए
तुम्हारा वह अलौकिक संबोधन
जिसे सुन
सब पूछ्ते थे
ओह!
यह नाम भी है तुम्हारा
आज सिर्फ़ तुम नहीं गए
चला गया तुम्हारे साथ ही
मेरा वह लाडेसर नाम भी
तुम्हारा झुरना,
मेरा झुरना था
तुम्हारा मरना
मेरा मरना है!!

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