अक्षर है
प्रेम
क्षरते हैं
प्रेम के आग्रह
प्रेम के आश्रय
आलंब-अवलंब
नहीं होती भाषा
कोई व्याकरण
पाठशाला
प्रेम की....
फ़िर भी
पूरे आवेग के साथ
पढा, पहचाना,
जाना जाता है
व्याप जाता है
प्रेम
जहां भी
होता है
प्रेम!
Search This Blog
24 September, 2011
12 September, 2011
कवि के साथ: दो कविताएं
कवि के साथ
१
कवि के साथ बैठा
देखा!
कवि उदास है
विचलित है
आपा-धापी
संवेदनहीन
अखाड़ेबाजों की दुनिया में
उसकी कविता
चारों खाने चित है
वह गढना चाहता है
नए बिम्ब, रूपक
प्रतिमान
नए उनमान
गूंज-अनुगूंज
अपनी कविता में
व्यक्त करना चाहता है
अपने भीतर की
कुलबुलाहट, छटपटाहट को
उसी चरम, रूप में
जिसमें वह है
पर हार जाता है
अभिव्यक्ति के औज़ारों से
दुनियावी बाज़ारों से
इसीलिए
कवि उदास है
विचलित है
सिमटा है
अपने ही भीतर
असहाय
देखते हुए कविता में
कविता से इतर
२
कई बार बैठा
कवि के साथ
उसकी कविता में
गोष्ठियों, समारोहों में
कभी-कभी घर में भी
और शाम को
वहां भी
जहां अधितर कवि
खुद का आइना दिखाते हैं
पूरी तरह खुलकर
गर्व से बताते हैं
कवि होने के अलावा भी
वे क्या-क्या हैं
और कैसे हैं
जानने की कोशिश की
कवि को
उसकी कविता को
आश्चर्य!
कविता कहीं मेल नहीं खाती
अपने कवि से
कवि!
बिल्कुल ही अलग सा होता है
अपनी कविताई की छवि से
१
कवि के साथ बैठा
देखा!
कवि उदास है
विचलित है
आपा-धापी
संवेदनहीन
अखाड़ेबाजों की दुनिया में
उसकी कविता
चारों खाने चित है
वह गढना चाहता है
नए बिम्ब, रूपक
प्रतिमान
नए उनमान
गूंज-अनुगूंज
अपनी कविता में
व्यक्त करना चाहता है
अपने भीतर की
कुलबुलाहट, छटपटाहट को
उसी चरम, रूप में
जिसमें वह है
पर हार जाता है
अभिव्यक्ति के औज़ारों से
दुनियावी बाज़ारों से
इसीलिए
कवि उदास है
विचलित है
सिमटा है
अपने ही भीतर
असहाय
देखते हुए कविता में
कविता से इतर
२
कई बार बैठा
कवि के साथ
उसकी कविता में
गोष्ठियों, समारोहों में
कभी-कभी घर में भी
और शाम को
वहां भी
जहां अधितर कवि
खुद का आइना दिखाते हैं
पूरी तरह खुलकर
गर्व से बताते हैं
कवि होने के अलावा भी
वे क्या-क्या हैं
और कैसे हैं
जानने की कोशिश की
कवि को
उसकी कविता को
आश्चर्य!
कविता कहीं मेल नहीं खाती
अपने कवि से
कवि!
बिल्कुल ही अलग सा होता है
अपनी कविताई की छवि से
06 September, 2011
हमारे हाथ
अलसुबह
नींद से जागने से
रात को सोने तक
कितनी चीज़ें
गुज़रती है हाथों से होकर
पता नहीं
क्या-क्या करते हैं हाथ
पता नहीं
कुछ भी नहीं रहता टिका
हाथों के हाथ
घिस जाती है
झूठी पड़ जाती है
हस्तरेखाएं भी
वक्त गए
फ़िर भी पाले रहते हैं हम
भ्रम
सब हैं हमारे साथ
सब कुछ है
हमारे हाथ
Subscribe to:
Posts (Atom)