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26 June, 2010

एक कविता प्रेम पर

प्रेम
जो भी करता है
उसे अपना ही एक अर्थ देता है
किसी के लिए
राधाष्याम, मीरागिरधर,
सोहनीमहिवाल, हीररांझा,
ढोलामरवण है प्रेम
किसी के लिए
किसी को देखना भर प्रेम है
किसी को
किसी का अच्छा लगना
किसी के लिए
किसी की जान प्रेम है
तो किसी के लिए
किसी के साथ सोने की चाह भर है प्रेम
जितने प्रेम
उतने अर्थ
कुछ अनमोल
कुछ व्यर्थ
किसी के लिए ईष्वर
किसी के लिए भक्ति
किसी के लिए आसक्ति
किसी के लिए विरक्ति है प्रेम
मेरे लिए प्रेम है
एक आष्चर्य
शब्द व्यक्त से परे
एक ऐसा आष्चर्य
जो सिर्फ होता है
होता है
कहीं भी
कभी भी

भायला(राजस्थानी)

जद उणां सूंप्यो उणनै
मीठै पुरसारै रो धामो
बिचै री सैंग पंगतां डाकनै
वो पूग्यो ठेठ वीं पंगत
जठै उडीकै हा पुरसारै सारू उणरा
खासमखास भायला
भायला आखिर भायला हुवै
भायला नै बिसरायां किंया सरै
आडै वगत भायला ईज काम आवै
वडा वडा जीमणां में
भायला मिल जावै तो राम मिल जावै
भायला साथै जीमणै
अर
भायला नै जीमावणै में
खास आनंद आवै

22 June, 2010

पिता

पिता
तुम्हारे जाने के बाद
मैंने महसूसा
कितना जरूरी था मेरे लिए
तुम्हारा होना
तुम्हारा बिछौना
बात बात पर
रोकना, टोकना
कितना निश्चिंत
मुक्त था मैं
तुम्हारी छाया में
सुप्त था मैं
तुम चिता में चुपचाप
मैं चिंता में चुपचाप
तुम्हारा वह चिर मौन
कितना बोल रहा था
स्म्रतियों के कितने
अनगिन द्वार खोल रहा था
उन कुछ ही पलों में मैं
एक जीवन जी गया
कितनी खुशियां
वह एक आंसू पी गया
पिता!
अब मैं कभी नहीं सुन पाऊंगा
अपनी ही तरह का
मेरे लिए
तुम्हारा वह अलौकिक संबोधन
जिसे सुन
सब पूछ्ते थे
ओह!
यह नाम भी है तुम्हारा
आज सिर्फ़ तुम नहीं गए
चला गया तुम्हारे साथ ही
मेरा वह लाडेसर नाम भी
तुम्हारा झुरना,
मेरा झुरना था
तुम्हारा मरना
मेरा मरना है!!

20 June, 2010

ओ मेरे पिता

ओ मेरे पिता!
मुझे है पता
मैं कभी नहीं उतरा
तुम्हारी अपेक्षाओं पर खरा

कभी नहीं रख सका
तुम्हारी छांह में
खुद को हरा भरा
मैं कभी नहीं भूला पाता
हमेशा संदेहों से घिरा
तुम्हारा वह चेहरा!

ओ पिता!
मुझे बता!
मैं कितना रीता
कितना बीता

तुम्हें तो सब है पता
तुम हो पिता!

14 June, 2010

हम सब जीते हैं

सफ़ेदी की चमकार
ये अंदर की बात है
टेस्ट आफ़ इंडिया
कुछ मीठा हो जाए
हटके झटके
टेढे हैं पर मेढे हैं
भूख लगे तो बस...
क्या करें मानते ही नहीं बच्चे

कितने ही शैंपू काम लिए
बालों को लम्बे काले घने रखने के लिए
फ़िर कोई नया शैंपू आ धमकता है
एक नयी खासियत के साथ

कितने फ़ेसवाश काम लिए
चेहरे को खूबसूरत और हसीन बनाने के लिए
फ़िर कोई फ़ेसवाश आ धमकता है
एक नयी खासियत के साथ

कितनी साबुनें आजमायी
देह की ताज़गी के लिए
फ़िर कोई नई साबुन आ जाती है
ललचाने के लिए

कितने शक्तिवर्धक प्राश, कैप्सूल लिए
योग व्यायाम किए
इस काया को चुस्त दुरस्त दीर्घायु रखने के लिए
फ़िर कोई नया नुस्खा आ जाता है
भरमाने के लिए

खाने पीने, जगने सोने से लेकर
जीवन का हर क्रिया कलाप
संचालित है विग्यापनों के हाथों

केवल बच्चे ही नहीं
हम सब जीते हैं
विघ्यापित जीवन

12 June, 2010

अच्छे दिन

और अच्छे दिनों की
चाह,उम्मीद में
यूं ही चले जाते हैं
जाने कितने अच्छे दिन
हम देखते भर रह जाते हैं
गुजर जाते हर अच्छे दिन को
क्या होता है अच्छे से और अच्छा
कब किसने सोचा!
क्या हो गया है हमारे ज़ेहन को
क्यूं कोसते रहते हैं हमेशा
अपने वर्तमान को
बन बैठते हैं खुद ही,
खुद के भविष्यवक्ता

05 June, 2010

अभिमन्यु

और कितने झूठ
और कितने बहाने
और कितने समर्पण
सहने होंगे

आखिर कब तक
होंठ गूंगे, आंखें अंधी,
कान बहरे होंगे

किसके
भीतर की धधकती आग
बनेगी सबके हकों की मशाल

मनुष्यता का भख लेती
दानवी ताकतों के विरुद्ध
राजनीति, अपने हितों से ऊपर उठकर

कौन हूंकारेगा, लडे.गा?
अपना पहला पग धरेगा
निनाद, जयघोष करेगा

भेदेगा चक्रव्यूह,
बनेगा अभिमन्यु
बचेगा और बचाएगा हमें!!
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