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30 August, 2011

पांच कविताएं: नवनीत पाण्डे



तुमने!
शब्द नहीं
मुझे तोड़ा है
कर दिया
अर्थहीन...


यह शब्द नहीं
मेरा अर्थ है
अगर पा सको...


आसमान को
आस मान


जड़
केवल जड़ नहीं
जन्म, जीवन और मृत्यु है
पेड़ की


पेड़
केवल पेड़ नहीं
एक रास्ता है
जड़ तक पहुंचने का
अगर कोई पहुंच सके...

12 August, 2011

पहाड़ के भीतर


चढते हुए
पहाड़ पर
रास्तों पर चलने के
अभ्यस्त पैर
डगमगाए कई बार
बहुत डराया
चेताया पहाड़ ने
पहली बार महसूसा
और जाना
पहाड़ों से बतियाते हुए
पहाड़ के भीतर
हाड़ ही नहीं
एक कोमल हृदय भी है
नेह भरा



धरती पर
धरती का ही
अंश है पहाड़
पहाड़ के हाड़ों में
भरी है
जाने कितनी उर्वरा
तभी तो पहाड़
दिखता है हरा
एक बार!
सिर्फ़ एक बार
पहाड़ के भीतर कोई
झांके तो जरा...


पहाड़ को
जिसने भी देखा है
होते हुए पहाड़
एक वही जानता है
पहाड़ का भीतर
पहाड़ अपने आप
कभी नहीं खोलता
अपना भीतर


पहाड़ खुदा तो
पहाड़ के भीतर
दिखे
कई पहाड़
अपरिचित था
पहाड़ खुद भी
अपने भीतर के पहाड़ों से



बचपन में घोटे थे
कितने पहाड़े
पर
आया ही नहीं स्मति में
कभी कोई पहाड़
पढते हुए पहाड़े

07 August, 2011

शब्दों से ही लड़ूंगा

मत मानों
मत स्वीकारो
चाहे जितनी बार मारो
नोच लो पर
फ़िर भी उड़ूंगा
नहीं मरूंगा
न ही डरूंगा
किसी भय
जय-पराजय से
नहीं मानूंगा हार....
खुले रखे हैं द्वार
हरेक की
हर सौगात के लिए
घात प्रतिघात के लिए
शब्दों से ही लड़ूंगा
शब्दों की जमात के लिए
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