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07 April, 2013

जैसे जिनके धनुष व कुछ अन्य कविताएं


मेरी कलम

मेरी कलम
मेरी थाती है
हर मोर्चे पर
केवल
और केवल
वही मुझे बचाती है
*****

कविता- १

शब्द नहीं है कविता
पर
शब्द से बाहर भी
कहां है कविता?
*****


कविता - २

कविता 
शब्द में नहीं 
उस पाठ- पाठी में होती हैं
जिन्हें कविता से लगते हैं शब्द!
एक शब्द में भी हो सकती है 
एक भरपूर, पूरी, 
मुक्कमल कविता
हो सकता है- 
सैंकड़ों कविताओं के संग्रह में
न हो एक भी कविता
*****


ढके-छिपे सच!

लुभाते हैं
ललचाते हैं 
कुछ शीर्षक
मुख पृष्ठ
अपनी तड़क-भड़क से
पर 
जब खुलने लगते हैं 
भीतर के 
पृष्ट दर पृष्ट
आ ही जाते हैं चौड़े
सारे ढके-छिपे सच!
*****



जैसे जिनके धनुष हैं

न तुम कम
न मैं कम
वह भी कम नहीं वीर
जैसे जिनके धनुष, 
वैसे उनके तीर
*****


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