मेरी कलम
मेरी कलम
मेरी थाती है
हर मोर्चे पर
केवल
और केवल
वही मुझे बचाती है
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कविता- १
शब्द नहीं है कविता
पर
शब्द से बाहर भी
कहां है कविता?
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कविता - २
कविता
शब्द में नहीं
उस पाठ- पाठी में होती हैं
जिन्हें कविता से लगते हैं शब्द!
एक शब्द में भी हो सकती है
एक भरपूर, पूरी,
मुक्कमल कविता
हो सकता है-
सैंकड़ों कविताओं के संग्रह में
न हो एक भी कविता
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ढके-छिपे सच!
लुभाते हैं
ललचाते हैं
कुछ शीर्षक
मुख पृष्ठ
अपनी तड़क-भड़क से
पर
जब खुलने लगते हैं
भीतर के
पृष्ट दर पृष्ट
आ ही जाते हैं चौड़े
सारे ढके-छिपे सच!
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जैसे जिनके धनुष हैं
न तुम कम
न मैं कम
वह भी कम नहीं वीर
जैसे जिनके धनुष,
वैसे उनके तीर
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