रिश्ते
सिर्फ़
हम दो
हमारे दो
सम्बन्ध
सिर्फ़ उन से
जो काम के हो
समाज
सिर्फ़ वह
जहां अपना कोई न हो
उत्सव
सिर्फ़ वहां
जहां
औपचारिक-अनौपचारिक
आयोजनों के
औपचारिक निमंत्रणों से
भीड़ इकठ्ठा हो
क्या पढा-लिखा
क्या अनपढ
आदमी रहा
आदमी से कट
सारी आत्मीयता, सगापन
रोशनी की जगमगाहटों, शाही टैंटों में
शाही दावत का स्वाद ले
अपने-अपने अंधेरों में
दुबक गया है
आदमी
सिर्फ़
एक शुभकामनाओं सहित
शगुन का लिफ़ाफ़ा
हो कर रह गया है...
*****
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26 December, 2011
17 December, 2011
हो जाऊं खुद ही कलम
सम्भालता रहता हूं जड़ें
पेड़ों को, हरा-हरा रखने के लिए
हो जाना चाहता हूं चाक
अनगढ मिट्टी को, गढने के लिए
सपनें हो जाए गर हकीकत
मौका ही न दूं, आंसुओं को बहने के लिए
चाहता हूं हो जाऊं खुद ही कलम
ज़िंदगी के सफ़ों की, कविता लिखने के लिए
पेड़ों को, हरा-हरा रखने के लिए
हो जाना चाहता हूं चाक
अनगढ मिट्टी को, गढने के लिए
सपनें हो जाए गर हकीकत
मौका ही न दूं, आंसुओं को बहने के लिए
चाहता हूं हो जाऊं खुद ही कलम
ज़िंदगी के सफ़ों की, कविता लिखने के लिए
06 December, 2011
दो कविताएं : नवनीत पाण्डे
हो गया कवि
उस अलौकिक ने
रचा मुझे
मैंने-
देखते
समझते हुए
महसूसते हुए
बाहर को
भीतर अपने
दी गयी भाषा में
रचा फ़िर से तुम्हें
अपनी लेखनी से
बाहर
और
हो गया कवि
*****
कविता में.....
मैंने देखा था तुम्हें
पहले पहल
कविता में
फ़िर कविता में
फ़िर फ़िर कविता में
पर देखना बाकी है अभी
कविता है क्या?
कविता में.....
*****
उस अलौकिक ने
रचा मुझे
मैंने-
देखते
समझते हुए
महसूसते हुए
बाहर को
भीतर अपने
दी गयी भाषा में
रचा फ़िर से तुम्हें
अपनी लेखनी से
बाहर
और
हो गया कवि
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कविता में.....
मैंने देखा था तुम्हें
पहले पहल
कविता में
फ़िर कविता में
फ़िर फ़िर कविता में
पर देखना बाकी है अभी
कविता है क्या?
कविता में.....
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