(स्व.जनकवि-गीतकार मोहम्मद सदीक को समर्पित)
जानता है सब मगर, बोलता नहीं
आम-आदमी जुबान खोलता नहीं
है उसे मालूम, क्या हो रहा है क्यूं
उसका भाग, ये अंधेरे ढो रहा है क्यूं
उसका घर, सुख क्यूं टटोलता नहीं
दीन-हीन बेटे उसके, मरे जेल में
कौन है असल खिलाड़ी, मौत-खेल में
जाने हर कोई, होंठ खोलता नहीं
छोड़े थे कुत्ते चोरों की, सूंघ के लिए
कुत्ते सारे हाकिमों के, घर को हो लिए
पालतू हरेक कुत्ता, भौंकता नहीं
जानता है सच वह, हड़ताल-बंद का
वही भोगता है दंड, इस अफ़ंड का
भूख-मुफ़लिसी को कोई, मौलता नहीं
बोले तो अंजाम क्या, जानता है वो
अपनी क्या औकात, पहचानता है वो
घाव सरेआम अपने, खोलता नहीं
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18 February, 2012
05 February, 2012
न देखे कोई नामवर...
बरसों पहले लिखा गीत जैसा कुछ आज हाथ आ गया। उन लेखन-प्रतिभाओं को समर्पित जो हमारी आलोचना-दृष्टि और आलोचकों की वजह से वह स्थान नहीं पा सकी जिसकी वे हकदार थीं...
गीत जैसा कुछ
न देखे कोई नामवर...
न देखे कोई नामवर
तू तो अपना काम कर
शब्द-शब्द कलम से
काल की टंकार भर
हर शब्द जो लिखा
काल की भट्टी पकाए
कालांतर रहे वही
होती जहां संभावनाएं
बीज फ़ूटे, फ़ूले-फ़ले
ज़मीं ऎसी तैयार कर...
इतिहासों के इतिहास में
कितने ही नाम है अनाम
कितनों ही के किए काम
दर्ज हुए औरों के नाम
हो जा खुद खबरदार
सब को खबरदार कर...
न हारे कोई, जीत ऎसा
सबको तारे, सीख ऎसा
लोग पढें सब लिख ऎसा
वेद टिके ज्यों टिक ऎसा
कोई किसी का हक न मारे
जन-जन में हुंकार भर...
गीत जैसा कुछ
न देखे कोई नामवर...
न देखे कोई नामवर
तू तो अपना काम कर
शब्द-शब्द कलम से
काल की टंकार भर
हर शब्द जो लिखा
काल की भट्टी पकाए
कालांतर रहे वही
होती जहां संभावनाएं
बीज फ़ूटे, फ़ूले-फ़ले
ज़मीं ऎसी तैयार कर...
इतिहासों के इतिहास में
कितने ही नाम है अनाम
कितनों ही के किए काम
दर्ज हुए औरों के नाम
हो जा खुद खबरदार
सब को खबरदार कर...
न हारे कोई, जीत ऎसा
सबको तारे, सीख ऎसा
लोग पढें सब लिख ऎसा
वेद टिके ज्यों टिक ऎसा
कोई किसी का हक न मारे
जन-जन में हुंकार भर...
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