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15 May, 2010

बचपन

’बोई कट लम्बा है!
की गूंज के साथ
टेढी मेढी गलियों में,
आसमान में कटकर लहराती पतंग को
लूटने की होड में
अर्जुन की आंख मांनिद टक टक आंखे
ऊंची नीची छ्तों को लांघते
बेखौफ़ नन्हे नंगे पांव
कंटीले झाड की वो लम्बी टहनी थामे
कुछ नन्हे हाथ
आज भी है जस तस
स्म्रति पटल पर!
पर नहीं है आज
पतंगों भरा वो आसमान
’बोई कट लम्बा है!’ का गुंजान गान
सच! हमारे साथ साथ
कितना बडा कर दिया है हमने
हमारे बच्चों का बचपन

09 May, 2010

मां!

बचपन की जरूरत
ममता की मूरत है मां
धरती पर साक्षात
ईश्वर की सूरत है मां
स्नेह का आंचल
नज़र का टीका है मां
ग्यान की पहली अंगुली
जीवन का सलीका है मां
मां मीत मां प्रीत है
मां गीत है, संगीत है
मां को प्रणाम नमन
मां से ही है जीव और जीवन

मां!

मां!
तुमने बताया था मुझे
मेरी तुतलाती ज़ुबान से
निकला पहला शब्द
जिसे सुनते ही
भर लिया था तुमने अपने आंचल में
और चूम लिया था मेरा ललाट
वह अहसास तब भी अव्यक्त था
और आज भी
ठीक वैसे ही जैसे कि तुम! अव्यक्त
मैंने हमेशा ही कही तुम्हें अपने मन की
बिना जाने तुम्हारा मन
मैं कभी नहीं भूलता
मेरे सुख‍‌-खुशी पर तुम्हारे चेहरे की
वह चिर पावन मुस्कान
मेरे सर वह नेह भरा कोमल स्पर्श
मैंने कभी कुछ नहीं छिपाया अपना
तुमने कभी कुछ बताया अपना
तुम्हारा एक उम्र सा मौन
आज कितना बोलता है!!
मैं तुम्हें हमेशा सुनता हूं मां!
-नवनीत पाण्डे

04 May, 2010

बच्चा तो सिर्फ बच्चा था
मैंने ही उसे कहा- भिखारी कहीं का!
शर्म नहीं आती मांगते हुए
पर देता क्या हूं उसकी गरीबी को
सिवाय कुछ गालियों, उपदेशों के
हम भाषण देते हैं
बहुत ठाठ से दफ्तर में
कैंटीन वाले बच्चे के हाथ से
गर्म गर्म चाय, कैचोडी लेते हैं
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