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12 January, 2014

गज़ल जैसा कुछ - फूल मत तोड़ो खुश्बू कहती हैं

गज़ल जैसा कुछ


फूल मत तोड़ो खुश्बू कहती हैं

जान इन में ही मेरी बसती है
फूल मत तोड़ो खुश्बू कहती हैं

ये जो टूटा तो टूट जाऊंगी मैं
सुर को मत तोड़ो राग कहती है

जो नहीं आती कभी होठों पर
बातें हर दिल में ऐसी रहती है

है नहीं चाहत जिन्हें समंदर की
ऐसी नदियां भी इधर बहती है

आंख पढ लें न झूठ आंखों का
आंख से बच के आंख रहती है

वह तो फूला है फलों फूलों पर
पेड़ क्या जाने जड़ क्या सहती है

चंद महलों की रोशनी के लिए
जाने कितनों की बस्ती जलती है

है मुक्कमल कौन दुनियां में
कोई न कोई कमी तो रहती है

हम भी सूरज कि चांद हो जाएं
हर सितारे के दिल ये रहती है

गया कहां था बता तो जाता
घर में घुसते ही मां ये कहती है

जो जलाते हैं हवाओं में दीए
उनकी अंधेरों से ठनी रहती है
*****


वो उन्हें, वो उन्हें, पार लगाते रहे।


वो उन्हें, वो उन्हें, दम दिखाते रहे।
एक दूजे को यूं, आजमाते रहे।

था सबको पता, असल में कौन क्या?
नूरा कुश्ती सभी को, दिखाते रहे।

करते भी और क्या, नाव जो एक थी
वो उन्हें, वो उन्हें, पार लगाते रहे।

बोलती हुयी बंद, जब खुले राज ए यार
बंट खाते रहे, कसमसाते रहे।

पूछा! कामरेड, ये पोलिटिक्स है क्या?
बात घुमाते रहे, मुस्कराते रहे।
*****

चक्कर क्या है?

देख के भी,  अनदेखा करते थे जो 
आज रहे चल के पुकार, चक्कर क्या है?

दिया न उत्तर कभी सलाम का 
आज चल के खुद नमस्कार, चक्कर क्या है?

मूंह फुलाए ही दिखे हमेशा
आज जता रहे इतना प्यार, चक्कर क्या है?

रहे बोल में बारह आने
आज होंठ बहे रसधार, चक्कर क्या है?

कल तक हमें बताते कमतर
आज हमारी रहे बघार, चक्कर क्या है?

नहीं थी हमारी जिन्हें दरकार
आज मनुहारों पर मनुहार, चक्कर क्या है?


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