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20 August, 2010

बातें हकों की

छोडो बातें हकों की
नेतागिरी है सिर्फ़ नफ़ों की
नारे सिर्फ़ नारे हो गए
संगठन बेचारे हो गए
मशालें अब कौन थामे
हाथ हलकारे हो गए

ज़िंदगी का मतलब
सिर्फ़ सांसे लेना हो गया
रगों का खून,
लाल रंग हो के रह गया
अर्थ और स्वार्थ के
वारे न्यारे हो गए

ज़ुबां बेज़ुबान,
कान भी अकान है
बाज़ारों के मकडजाल में
खोया, उलझा इंसान है
हम कितने मजबूर
बेसहारे हो गए

15 August, 2010

पंद्रह अगस्त

सपने त्रस्त
हौसले पस्त
हम सब अभ्यस्त
मस्त हो रही
पंद्रह अगस्त

जीवन है सख्त
कितना कंबख्त
नीरस, विरक्त
मस्त हो रही
पंद्रह अगस्त

शासक सशक्त
अपने में व्यस्त
मतलबपरस्त
मस्त हो रही
पंद्र्ह अगस्त

कंगूरे ध्वस्त
सूरज है अस्त
कैसा ये वक्त
मस्त हो रही
पंद्रह अगस्त

04 August, 2010

सैंग कैवै

सैंग कैवै-
लिखो राजस्थानी
सीखो राजस्थानी
म्हारो बी जी
घणो ईज तडफ़ा तोडै
लिखूं राजस्थानी,
बोलूं राजस्थानी
सीखूं राजस्थानी
पण जद देखूं च्यारूंपासी
आवै म्हनै हांसी...
राजस्थानी रा झंडा च्यारुं कानीं
पर किण सांचै हियै, मूंडै राजस्थानी
लिखारा लिखै घणी ईज राजस्थानी
पण भणै कुण
लिखारा ईज नीं भणै
लिखारां री लिखी राजस्थानी
न नार राजस्थानी, न भरतार राजस्थानी
न घर राजस्थानी, न बाजार राजस्थानी
न पैरूंकार राजस्थानी न सरकार राजस्थानी
मायड. भासा रै हक री आ लडाई
तद तांई लागै थोथी
जद तांई नीं आवै राजस्थानी रा लाडेसरां रै हाथ
राजस्थानी री पैली पोथी
वगत रो तकादो
खोसनै खावै जिको जीत में रैवै
मंगतां नै सापतो लाडू
कोई नीं देवै...
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