तुम उसे देख रहे हो
जो दिखता ही नहीं
जो दिखता है
उसे तुम देखते ही नहीं
यह तुम्हारा नहीं
समय का स्खलन है
दृष्टियों में
गिध्द ही गिध्द समाए हैं
शब्द
जिह्वा पर ही
घबराए हुए हैं
छूटता ही नहीं
तरकश से तीर
मैदान ए जंग में
शिखण्डी ही शिखण्डी
आए हुए हैं
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31 May, 2011
26 May, 2011
तलाश है उस घर की
तलाश है उस घर की
जिस में लगे कुछ
घर जैसा
न तुम दिखो
संदेहों और
अविश्वासों से घिरी
न मैं रहूं
भयाक्रांत
आशंकाओं से डरा
मिल सकता है हमें क्या
घर ऎसा?
वह घर
सिर्फ़ हो घर
किसी अनहोनी को
जिसकी कभी भी न लगे खबर
न ही
किसी नज़र की नज़र
जिसके सपनों में भी
हकीकतें ही दिखे
हम क्या होना चाहते हैं
यह नहीं
हम
क्या से क्या हुए हैं
यह दिखे....
जिस में लगे कुछ
घर जैसा
न तुम दिखो
संदेहों और
अविश्वासों से घिरी
न मैं रहूं
भयाक्रांत
आशंकाओं से डरा
मिल सकता है हमें क्या
घर ऎसा?
वह घर
सिर्फ़ हो घर
किसी अनहोनी को
जिसकी कभी भी न लगे खबर
न ही
किसी नज़र की नज़र
जिसके सपनों में भी
हकीकतें ही दिखे
हम क्या होना चाहते हैं
यह नहीं
हम
क्या से क्या हुए हैं
यह दिखे....
24 May, 2011
मुझ में रेत
इन रेतीले धोरों पर
बहती रेतीली हवा
मिटा रही है
मेरे कदमों के निशान
फ़िर भी चला जा रहा हूं
अपनी राह
नहीं कहीं कोई छांह
दूर दूर तक बिछी
रेत ही रेत
अथाह
सांवलिया रंग
सांवलिया अंग
रेत के खेत
रेत का समंदर
बाहर रेत
रेत ही अंदर
लिखूं रेत
बांचूं रेत
अरोगूं रेत
बांटू रेत
रेत में मैं
मुझ में रेत
बहती रेतीली हवा
मिटा रही है
मेरे कदमों के निशान
फ़िर भी चला जा रहा हूं
अपनी राह
नहीं कहीं कोई छांह
दूर दूर तक बिछी
रेत ही रेत
अथाह
सांवलिया रंग
सांवलिया अंग
रेत के खेत
रेत का समंदर
बाहर रेत
रेत ही अंदर
लिखूं रेत
बांचूं रेत
अरोगूं रेत
बांटू रेत
रेत में मैं
मुझ में रेत
19 May, 2011
हवाओं के रुख
हवा जब भागती है
सिर्फ़ हवा ही नहीं
कई चीजें भागती है
एक समर्पण के साथ
हवा के साथ-साथ
हवा
हिला देती है
उखाड़ देती है
मजबूत जड़ें
खड़े
हो जाते पल भर में
पड़े..
अंधी, बहरी
और दिशाहीन
होती है हवाएं
कोई नहीं चीन्ह पाया
हवाओं के रुख
कब, कौन, कहां
कह पाया
हवाओं से
रुक..!
सिर्फ़ हवा ही नहीं
कई चीजें भागती है
एक समर्पण के साथ
हवा के साथ-साथ
हवा
हिला देती है
उखाड़ देती है
मजबूत जड़ें
खड़े
हो जाते पल भर में
पड़े..
अंधी, बहरी
और दिशाहीन
होती है हवाएं
कोई नहीं चीन्ह पाया
हवाओं के रुख
कब, कौन, कहां
कह पाया
हवाओं से
रुक..!
16 May, 2011
दो कविताएं
१.
सब ने
बारिशें होते देखा
भीगते भिगोते देखा
मैंने!
हां
सिर्फ़ मैंने!
आसमान को
धाड़ धाड़ रोते देखा
२.
नदी के भीतर
जल ही नहीं
एक मन भी है
कल कल छल छल
अकुलाता
हर आंख, कान को
हेर हेर बुलाता
विस्मय
और
विस्मय
दिखाता
सुनो!
सुनो!
यह नाद
नदी का
महसूसो
भीतर
एक बहाव
नदी का
सब ने
बारिशें होते देखा
भीगते भिगोते देखा
मैंने!
हां
सिर्फ़ मैंने!
आसमान को
धाड़ धाड़ रोते देखा
२.
नदी के भीतर
जल ही नहीं
एक मन भी है
कल कल छल छल
अकुलाता
हर आंख, कान को
हेर हेर बुलाता
विस्मय
और
विस्मय
दिखाता
सुनो!
सुनो!
यह नाद
नदी का
महसूसो
भीतर
एक बहाव
नदी का
10 May, 2011
गज़ल जैसा कुछ -२ (एक दूसरे से अपनी जान छुड़ाई)
उसको उस में ज़न्नत नज़र आई
उसको उस में खुदा की खुदाई
कई रातें उसने जागकर बिताई
कई दिन उसे भी नींद नहीं आई
दोनों ने मिल के कसमें खाई
न उसने निभाई न उसने निभाई
जब मिले दोनों, हकीकत समझ आई
न उसे वह सुहाया, न उसे वह भाई
उसने अपनी मजबूरियां गिनाई
उसने अपनी मजबूरियां गिनाई
इस तरह दोनों ने किसी तरह
एक दूसरे से अपनी जान छुड़ाई
उसको उस में खुदा की खुदाई
कई रातें उसने जागकर बिताई
कई दिन उसे भी नींद नहीं आई
दोनों ने मिल के कसमें खाई
न उसने निभाई न उसने निभाई
जब मिले दोनों, हकीकत समझ आई
न उसे वह सुहाया, न उसे वह भाई
उसने अपनी मजबूरियां गिनाई
उसने अपनी मजबूरियां गिनाई
इस तरह दोनों ने किसी तरह
एक दूसरे से अपनी जान छुड़ाई
06 May, 2011
प्रेम ढूंढा जाए
प्रेम
खो गया है
पता नहीं कैसे
बाहर है समझ से
बस इतना पता है
प्रेम अब नहीं रहा
किसी के पास
प्रेम की परिभाषा में है बस
कुछ लुभावने, जादू भरे
शब्दों की बकवास
सब के पास
प्यास ही प्यास
बचे कहां है अहसास
हो न हो विश्वास
अरसे से है तलाश
गुमशुदा प्रेम की
इस निवेदन के साथ कि
यह सच
सार्वजनिक न किया जाए
चुपचाप
हृदय की अतल गहराई
और पूर्ण ईमानदारी से
प्रेम ढूंढा जाए
खो गया है
पता नहीं कैसे
बाहर है समझ से
बस इतना पता है
प्रेम अब नहीं रहा
किसी के पास
प्रेम की परिभाषा में है बस
कुछ लुभावने, जादू भरे
शब्दों की बकवास
सब के पास
प्यास ही प्यास
बचे कहां है अहसास
हो न हो विश्वास
अरसे से है तलाश
गुमशुदा प्रेम की
इस निवेदन के साथ कि
यह सच
सार्वजनिक न किया जाए
चुपचाप
हृदय की अतल गहराई
और पूर्ण ईमानदारी से
प्रेम ढूंढा जाए
03 May, 2011
बस यही तो अब हमारे बीच रहा!!
मैं जो कहूंगी
तुम सुनोगे नहीं
मेरा किया तुम्हें
जचेगा नहीं
बात वहीं की वहीं
तुम कहीं मैं कहीं
करना तो आखिर वही होगा न!
जो तुम कहोगे
और हमेशा तुम ही तो कहते हो
मेरा हक तो
इतना भर रहा
करूं हमेशा तुम्हारा कहा
तुम मुझे सहते हो
मैंने तुम्हें सहा
बस यही तो अब
हमारे बीच रहा!!
तुम सुनोगे नहीं
मेरा किया तुम्हें
जचेगा नहीं
बात वहीं की वहीं
तुम कहीं मैं कहीं
करना तो आखिर वही होगा न!
जो तुम कहोगे
और हमेशा तुम ही तो कहते हो
मेरा हक तो
इतना भर रहा
करूं हमेशा तुम्हारा कहा
तुम मुझे सहते हो
मैंने तुम्हें सहा
बस यही तो अब
हमारे बीच रहा!!
01 May, 2011
गज़ल जैसा कुछ - १
गिर जाने का उनको, लगता हमेशा डर
रखते हैं हर कदम, सोच समझ कर
हम भले, तुम भले, भला हमारा घर
दुनियां जाए भाड़ में, करें क्यूं फ़िकर
जितना मिले, जहां मिले, चूकना नहीं
सबकी पोल खोलें, खुद की छिपा कर
सड़कों पर उतरे मूरख, हाथों में ले मशालें
उनके घर जला के, चमकाते अपना घर
औरों के कांधे हरदम, लड़े अपनी लड़ाई
जीतें हरेक बाजी, शकुनि सा खेल कर
घर, गली चरते चरते, चर गए पूरा देश
फ़िर भी भरे न पेट, हाकिम हमारे जबर
ये पलें फ़ूलें फ़लें इनकी बला से देश जले
कैसी भी हो कहर , इन पर है बेअसर
रखते हैं हर कदम, सोच समझ कर
हम भले, तुम भले, भला हमारा घर
दुनियां जाए भाड़ में, करें क्यूं फ़िकर
जितना मिले, जहां मिले, चूकना नहीं
सबकी पोल खोलें, खुद की छिपा कर
सड़कों पर उतरे मूरख, हाथों में ले मशालें
उनके घर जला के, चमकाते अपना घर
औरों के कांधे हरदम, लड़े अपनी लड़ाई
जीतें हरेक बाजी, शकुनि सा खेल कर
घर, गली चरते चरते, चर गए पूरा देश
फ़िर भी भरे न पेट, हाकिम हमारे जबर
ये पलें फ़ूलें फ़लें इनकी बला से देश जले
कैसी भी हो कहर , इन पर है बेअसर
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