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19 May, 2011

हवाओं के रुख

हवा जब भागती है
सिर्फ़ हवा ही नहीं
कई चीजें भागती है
एक समर्पण के साथ
हवा के साथ-साथ
हवा
हिला देती है
उखाड़ देती है
मजबूत जड़ें
खड़े
हो जाते पल भर में
पड़े..
अंधी, बहरी
और दिशाहीन
होती है हवाएं
कोई नहीं चीन्ह पाया
हवाओं के रुख
कब, कौन, कहां
कह पाया
हवाओं से
रुक..!

1 comment:

  1. इस नज़्म को पढ़कर अपना एक शेर याद आ गया

    रुख हवाओं का बदलना है हमीं को लेकिन
    पहले आते हुए तूफां को गुजर जाने दे .
    ---देवेंद्र गौतम

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