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15 May, 2010

बचपन

’बोई कट लम्बा है!
की गूंज के साथ
टेढी मेढी गलियों में,
आसमान में कटकर लहराती पतंग को
लूटने की होड में
अर्जुन की आंख मांनिद टक टक आंखे
ऊंची नीची छ्तों को लांघते
बेखौफ़ नन्हे नंगे पांव
कंटीले झाड की वो लम्बी टहनी थामे
कुछ नन्हे हाथ
आज भी है जस तस
स्म्रति पटल पर!
पर नहीं है आज
पतंगों भरा वो आसमान
’बोई कट लम्बा है!’ का गुंजान गान
सच! हमारे साथ साथ
कितना बडा कर दिया है हमने
हमारे बच्चों का बचपन

1 comment:

  1. वाह! बहुत सुन्दर प्रस्तुति!

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