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17 December, 2011

हो जाऊं खुद ही कलम

सम्भालता रहता हूं जड़ें
पेड़ों को, हरा-हरा रखने के लिए

हो जाना चाहता हूं चाक
अनगढ मिट्टी को, गढने के लिए

सपनें हो जाए गर हकीकत
मौका ही न दूं, आंसुओं को बहने के लिए

चाहता हूं हो जाऊं खुद ही कलम
ज़िंदगी के सफ़ों की, कविता लिखने के लिए

1 comment:

  1. जीवन को कलम बनाकर काश लिखना हो पाता, बहुत ही सुन्दर और गहरे भाव।

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