प्रेम
जो भी करता है
उसे अपना ही एक अर्थ देता है
किसी के लिए
राधाष्याम, मीरागिरधर,
सोहनीमहिवाल, हीररांझा,
ढोलामरवण है प्रेम
किसी के लिए
किसी को देखना भर प्रेम है
किसी को
किसी का अच्छा लगना
किसी के लिए
किसी की जान प्रेम है
तो किसी के लिए
किसी के साथ सोने की चाह भर है प्रेम
जितने प्रेम
उतने अर्थ
कुछ अनमोल
कुछ व्यर्थ
किसी के लिए ईष्वर
किसी के लिए भक्ति
किसी के लिए आसक्ति
किसी के लिए विरक्ति है प्रेम
मेरे लिए प्रेम है
एक आष्चर्य
शब्द व्यक्त से परे
एक ऐसा आष्चर्य
जो सिर्फ होता है
होता है
कहीं भी
कभी भी
बहुत सुन्दर कहा …………………कल के चर्चा मंच पर आपकी पोस्ट होगी।
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ReplyDeleteनवनीत जी ,
ReplyDeleteबधाई ....रचना प्रभावशाली है .....!!
प्रेम प्यार की अहमियत अब कितनी? कहीं केवल "स्वारथ लाग करै सब प्रीती" तो नही? आपकी रचना मे सब कुछ वर्णित्। बधाई।
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