और अच्छे दिनों की
चाह,उम्मीद में
यूं ही चले जाते हैं
जाने कितने अच्छे दिन
हम देखते भर रह जाते हैं
गुजर जाते हर अच्छे दिन को
क्या होता है अच्छे से और अच्छा
कब किसने सोचा!
क्या हो गया है हमारे ज़ेहन को
क्यूं कोसते रहते हैं हमेशा
अपने वर्तमान को
बन बैठते हैं खुद ही,
खुद के भविष्यवक्ता
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