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09 March, 2011

तीन कविताएं

एक और आकाश

वह देखता है
अपनी आंखों से
आकाश
मैं देखता हूं
उसकी आंखों में
उसी आकाश में उड़ती
एक नन्हीं चिड़िया भी
अपनी आंखों में एक और आकाश लिए


मेरा ईश्वर!

मेरा ईश्वर!
शब्द हैं...
जो रचते हैं मुझे
लिखते हैं मुझे..
मेरा आवरण, अंत:करण
मेरा संर्घष, समर्पण
जिज्ञासाओं के दर्पण
करते स्तब्ध हर बार..
शब्द बार बार..


कविताओं के बीज बो रहे हैं

होना चाहता था कहानी
पर कविता हो गया
जानते हुए कि
कविता में अब
नहीं दिलचस्पी लोगों की
लोग कहानी हो रहे हैं
अकहानियों में खो रहे हैं
फ़िर भी न जाने किस धुन में
मैं और मेरे जैसे कई जिद्दी
कविताओं के बीज बो रहे हैं

1 comment:

  1. वाह...देखन को छोटन लगें.....बधाई!.

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