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31 March, 2011

इस नपुंसक सन्नाटे में

मुझे पता था
नहीं मिलेगा
मनचाहा
होगा अनचाहा
उस ओर होंगे सब के सब
इस ओर अकेला मैं
मुझे सुनना ही होगा सबको
पर
कभी नहीं दिया जाएगा हक
मुझे अपनी बात कहने का
पता था मुझे
ताज़िंदगी लड़ना होगा
लड़ते लड़ते मरना होगा
इस नपुंसक सन्नाटे में
खुद को ही सदा भरना होगा

3 comments:

  1. Sach keh diya aapne bhale hi kadwa laga ho Sadhuwad hai aapko

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  2. सन्नाटे का नया नाम , अकेलेपन का अहसास
    सुन्दर भाव, बहुत सुन्दर , बधाई

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