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22 February, 2011

हुआ क्या है मेरा?

वे
मुझे अच्छी तरह
जानते पहचानते हैं
पर मैं ही भूल गया
मैं उनके हाथों में खेला था
उनके घर एलबम में
तस्वीरें भी है मेरी
मेरे बचपन की
मेरा बचपन!!
जो खोया था न जाने किधर
वे लाए अपने साथ आज फ़िर
जब आए इधर..
बचपन के साथ
आयी याद मां की
कैसे अचानक ही
हाथ हो गए एकदम नन्हें नन्हें
लगे खोलने
बारखड़ी वाली किताब के पन्ने
क्या खूब हैं उन यादों के गवाक्ष
जब पप्पू सचमुच नहीं हुआ था पास
कितना था बदमाश!
मां कहती थी- सत्यानाश!
क्या होगा तेरा!
मां सच ही कहती थी
हुआ क्या है मेरा?

4 comments:

  1. कविता अच्छी लगी. बधाई!

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  2. सीधे सादे शब्दों में रचना के माध्यम से कही आपकी बात दिल छू गयी...
    नीरज

    ReplyDelete
  3. मां सच ही कहती थी

    हुआ क्‍या है मेरा ...।


    बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

    ReplyDelete
  4. बहुत ही सुंदर....!!

    ReplyDelete

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