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13 February, 2011

सच कहा तुमने! हम मेंढक ही हैं कुएं के

सच कहा तुमने!
हम मेंढक ही हैं कुएं के
हमें नहीं मालूम
क्या है आसमां की हद
कुएं के बाहर की जद
पर तुम तो जानते हो न!
पहचानते हो न!
सारे सच!
बताते क्यूं नहीं
हमें कुएं से बाहर लाते क्यूं नहीं

4 comments:

  1. बहुत कटु सत्य ...सुन्दर प्रस्तुति..

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  2. वाह...बेजोड़ रचना...बधाई स्वीकारें...
    नीरज

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