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03 February, 2011

कितनी रिव्यू आई...

ढूंढ रहा हूं वे शब्द
जो व्यक्त कर सके उस अनुभूति को
जो मेरे भीतर है
भाषा खामोश
चुप! सारे शब्दकोश
न जाने कब से मेरी कलम
बोये जा रही है बीज शब्दों के
पर कहां होती है फ़सल अच्छी
हर बार वही टुच्ची की टुच्ची
लेता ही रहता हूं विशेषज्ञों की राय
और नुस्खे
आजमाता ही रहता हूं
पारंपरिक,आधुनिक
उत्तर आधुनिक तीर-तुक्के, तौर तरीके
पर सब बेकार
होती ही नहीं अच्छी पैदावार
क्या करें यार!
कहां जा छुपी है रसधार!
लगता ही नहीं जब गंधार..
मध्यम क्या करेगा..
होगा क्या कभी?
मेरी अनुभूति का प्रसव
या
बांझ ही मर जाएगी
लावारिश..बेशिनाख्त
गर्भ में ही गिर जाएगी?
होगी कहीं दरियाफ़्त
कहां करें रपट
कहां है वट
कब तक भोगूं कष्ट
लगती है कहीं कचहरी
लिखनेवालों की?
दुनिया हो गई कार्पोरेट
कार्पोरॆट घरानों की
कौन रखता है खबर
घुमंतू, फ़ेरीवालों की
होती है क्या?
कहीं सुनवाई..
आलोचक तो.....
आप सब जानते हैं भाई!
चलिए छोडिए इस रामायण को!
बताइए!
आपकी कहां कहां..
कितनी रिव्यू आई...

3 comments:

  1. नमस्कार !
    बेहद गहरी रचना है , एक पीड़ा नज़र आई . ये सत्य भी है ,
    साधुवाद
    --

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  2. kab hoga meri anubhuti kar prasv ...nirasha ka sath achha nahi hota ashavan rahiye gajab ki bhavavyakti, badhai

    ReplyDelete
  3. kya hoga jaanker kitni rivyu aai, kisne fasal ki ahmiyat jaani ye mahatwpurn hai... anurodh hai - uah rachna vatvriksh ke liye bhejen rasprabha@gmail.com per

    ReplyDelete

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