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16 May, 2011

दो कविताएं

१.
सब ने
बारिशें होते देखा
भीगते भिगोते देखा
मैंने!
हां
सिर्फ़ मैंने!
आसमान को
धाड़ धाड़ रोते देखा

२.
नदी के भीतर
जल ही नहीं
एक मन भी है
कल कल छल छल
अकुलाता
हर आंख, कान को
हेर हेर बुलाता
विस्मय
और
विस्मय
दिखाता
सुनो!
सुनो!
यह नाद
नदी का
महसूसो
भीतर
एक बहाव
नदी का

1 comment:

  1. महसूसो
    भीतर
    एक बहाव
    नदी का

    बहुत सुन्दर ... कोमल भाव रचना में ...दोनों ही रचनाएँ पसंद आयीं

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