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09 May, 2010

मां!

मां!
तुमने बताया था मुझे
मेरी तुतलाती ज़ुबान से
निकला पहला शब्द
जिसे सुनते ही
भर लिया था तुमने अपने आंचल में
और चूम लिया था मेरा ललाट
वह अहसास तब भी अव्यक्त था
और आज भी
ठीक वैसे ही जैसे कि तुम! अव्यक्त
मैंने हमेशा ही कही तुम्हें अपने मन की
बिना जाने तुम्हारा मन
मैं कभी नहीं भूलता
मेरे सुख‍‌-खुशी पर तुम्हारे चेहरे की
वह चिर पावन मुस्कान
मेरे सर वह नेह भरा कोमल स्पर्श
मैंने कभी कुछ नहीं छिपाया अपना
तुमने कभी कुछ बताया अपना
तुम्हारा एक उम्र सा मौन
आज कितना बोलता है!!
मैं तुम्हें हमेशा सुनता हूं मां!
-नवनीत पाण्डे

5 comments:

  1. तुम्हारा एक उम्र सा मौन
    आज कितना बोलता है!!
    मैं तुम्हें हमेशा सुनता हूं मां!

    सुन्दर रचना !

    शुभकामनाएं ...:)

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  2. मातृ-दिवस की भावनाओं के अभिव्यक्त करती सुंदर रचना..
    आपके ब्लॉग-जगत मे पदार्पण पर शुभकामनाएँ

    ReplyDelete
  3. हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
    कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

    ReplyDelete
  4. मैंने कभी कुछ नहीं छिपाया अपना
    तुमने कभी कुछ नहीं बताया अपना
    तुम्हारा एक उम्र सा मौन
    आज कितना बोलता है!!
    मैं तुम्हें हमेशा सुनता हूं मां!

    बहुत कुछ कह गई छोटी सी रचना - आभार

    ReplyDelete
  5. नवनीतजी
    स्वागत !
    मां शब्द ही अपने आप में इतना प्रभावशाली है , …फिर समर्थ लेखनी का स्पर्श मिलने पर तो सोने में सुगंध - सी स्थिति पैदा होना स्वाभाविक ही है ।
    शुभकामनाओं सहित
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

    शस्वरं

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