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26 December, 2011

हम दो, हमारे दो

रिश्ते
सिर्फ़
हम दो
हमारे दो

सम्बन्ध
सिर्फ़ उन से
जो काम के हो

समाज
सिर्फ़ वह
जहां अपना कोई न हो

उत्सव
सिर्फ़ वहां
जहां
औपचारिक-अनौपचारिक
आयोजनों के
औपचारिक निमंत्रणों से
भीड़ इकठ्ठा हो

क्या पढा-लिखा
क्या अनपढ
आदमी रहा
आदमी से कट

सारी आत्मीयता, सगापन
रोशनी की जगमगाहटों, शाही टैंटों में
शाही दावत का स्वाद ले
अपने-अपने अंधेरों में
दुबक गया है

आदमी
सिर्फ़
एक शुभकामनाओं सहित
शगुन का लिफ़ाफ़ा
हो कर रह गया है...
*****

1 comment:

  1. रिश्ते कम हों,
    पर उनमें दम हो।

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