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10 July, 2010

उम्मीद

वो कत्ल करते रहते हैं
हम रोज़ मरते रहते हैं
वो बच निकलते हैं
हम भुगतते रहते हैं
अदालतें हैं, हाकीम हैं और गवाह भी
ताउम्र कटघरे बदलते रहते हैं
इंसाफ़ मिलता है नाइंसाफ़ियों को
फ़िर भी
इस नाउम्मीदी व्यवस्था से
उम्मीद के सहारे
ताज़िंदगी
हम उम्मीद करते रहते हैं

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