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27 October, 2011

काला टीका

मां को
कुछ नहीं बताता था
फ़िर भी
पता चल ही जाता था
आसानी से
मां को
मेरा हर झूठ
पकड़ लेती थी मां
मेरी हर चोरी
सब पता रहता था
मां को
मैं क्या कहता हूं
क्या करता हूं
क्या है मेरे मन में
कई बार
मां ने
मारा मु्झे
अपने ही तरीके से
सुधारा, संवारा मुझे
कभी-कभी अनायास
जब भी हाथ
माथे के बायीं ओर जाता है
मां का लगाया काला टीका
कोमल स्पर्श याद आता हैं
मैं कुछ भी नहीं कर पाया
मां के लिए
पर मां!
कितना कुछ कर गयी थी
मेरे लिए

3 comments:

  1. सुन्दर भावाभिव्यक्ति

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  2. माँ हमेशा एक सुन्दर कविता को ही जन्म देती है..

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