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01 October, 2011

स्री जो है

कहती नहीं
पालती है
भीतर-भीतर
सारे दुख
स्री जो है

भरती नहीं कभी भी
बस!
रीतती जाती है
सबको भरा रखने में
स्री जो है

पूछा ही नहीं किसी ने कभी
क्या है चाहें, इच्छाएं
हिस्से में सिर्फ़ रुदन, मौन
बांटती मुस्कराहटें
स्री जो है

2 comments:

  1. कितना कुछ अस्तित्व में समेटे हैं स्त्री।

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  2. माँ दुर्गा का रूप
    स्त्री जो है……
    अब धीरे धीरे समय के साथ परिस्थितियाँ बदल रही हैं…
    सुंदर रचना …

    ReplyDelete

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