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06 September, 2011

हमारे हाथ



अलसुबह
नींद से जागने से
रात को सोने तक
कितनी चीज़ें
गुज़रती है हाथों से होकर
पता नहीं
क्या-क्या करते हैं हाथ
पता नहीं
कुछ भी नहीं रहता टिका
हाथों के हाथ
घिस जाती है
झूठी पड़ जाती है
हस्तरेखाएं भी
वक्त गए
फ़िर भी पाले रहते हैं हम
भ्रम
सब हैं हमारे साथ
सब कुछ है
हमारे हाथ

6 comments:

  1. सच्चाई से कही गयी बात ....

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  2. सब हैं हमारे हाथ।

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  3. क्या बात है...एक भ्रम ही तो है...

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  4. सब हमारे हाथ है..सच में यही भ्रम सबसे बड़ा भ्रम है जिसे हम पाले रहते हैं

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  5. बहुत सार गर्भित रचना...बधाई

    नीरज

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  6. भ्रम ....!!!
    वाकी सच कहा आपने

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