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25 June, 2011

दो कविताएं


संवाद



अक्षर
जब
शब्द होता है
कोई न कोई
अर्थ होता है

शब्द
जब
कहा, सुना,
लिखा, पढा जाता है
कोई न कोई
संवाद राह बनाता है

संवाद
जब होठों पर आता है
मौन हकबका जाता है


तुम्हारा मौन


तुम!
और तुम्हारा मौन..
मैं!
और मेरा मैं..
दोनों के बीच
एक अर्थहीन अर्थ
मेरा..तुम्हारा
क्या
हदें
सचमुच
इतना अपरिचित
बना देती है?

10 comments:

  1. दोनों प्रस्तुति लाजवाब

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  2. बहुत बदिया...
    सादर..

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  3. कभी मौन बहता है,
    कभी मौन सहता है।

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  4. dono rachnaayen bahut acchi hain

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  5. दोनो रचनाये बेजोड्…………शानदार्।

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  6. दोनों ही रचनाएँ बहुत ही सुन्दर भाव एवं संवाद युक्त हैं....

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