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10 June, 2011

कंगूरे कह रहे हैं

कहां-कहां
कितनी-कितनी
ज़िंदा है कविता
कहां-कहां
गौरान्वित
कहां-कहां
शर्मिंदा है कविता
जहां-तहां देखो...
कवियों ही कवियों का है
बोलबाला
सब होचपौच
गड़बड़-झाला
क्या है?
कहां है?
कविता का आज
आज की कविता
क्यूं चुप, गूंगी है
कलम की आवाज़
संभावनाओं में जीते हुए
भावनाओं में बह रहे हैं
जड़ें खोखला रही है
कंगूरे कह रहे हैं

1 comment:

  1. बहुत सुन्दर भावो को उकेरा है।

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