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21 April, 2011

गज़ल जैसा कुछ



बजती है तेरी हंसी संगीत की तरह
गाता हूं तुम्हें मीत मैं गीत की तरह

देखने वाला, रह जाए बस देखता
दिल के अंजुमन में तुम, आती हो इस तरह

जाने कितने दिलों पर गिर जाती है बिजलियां
गेसू को अपने चेहरे पर, गिराती हो इस तरह

मदहोश हो जाता है हर शख्स होशवाला
मस्त नज़र के तीर जब, चलाती हो इस तरह

कोई कहे वाह! कोई कहे आह!
दिलकश अदा से धड़कनें, बढाती हो इस तरह

आता है दौड़ा दौड़ा हर दिल तेरी बज़्म में
दिल दिल से दिल तुम, लगाती हो इस तरह

बुझती ही नहीं कभी, बढती ही जाए प्यास
इतने प्यार से प्यार तुम, पिलाती हो इस तरह

कितना भी कहे ज़ुबां, होता ही नहीं बयां
प्यार में यार दिल ये, ज़ज़्बाती है इस तरह



अनछुई सी छुअन, छू छू जाती है जैसे
हर स्पर्श की स्मृतियां मुझे झन्नाती है ऎसे

बावला फ़िरे है कैसे, खूश्बू कहीं मिले है ऎसे
बरसे तेरी यादें रिमझिम, बरसती बारिश जैसे

दिन वो स्कूली सारे, वो छुप छुप करना इशारे
वो कट्टा कट्टी अनबन, रूठना मनाना कैसे

वो फ़िर कालिज में आना, थोड़ा खिल, खुल जाना
वो उल्लू बनना बनाना, मस्ती बदमाशियां ऎसे

आखिर जीत गए डर, तुम अपने घर, मैं अपने घर
न पलटे तुम इधर को, न ही मैं गुजरा उधर से

1 comment:

  1. ये गज़ल जैसा नही है ये तो दिल मे उतर गयी है खासकर पहले वाली………………हर शेर दिल मे उतरता हुआ……………बहुत ही मनमोहक गज़ल है शरारत भरी……………पढकर अच्छा लगा……………बहुत दिनो बाद ऐसी गज़ल पढी।

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