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27 April, 2011

पहले से ही लिख दी गई है हार

अनहोनियों के होने भर के अंदेशे से
पाल बैठे हैं जाने कितने भय
हर तरफ़ संशय ही सशंय
कितने अर्थ ढूंढते हैं एक शब्द के
बरतते अपने अपने माफ़िक
बांचते बांचते मुस्कराहट चेहरों की
गढने लगते कथाएं
क्षुद्र मानसिकताओं की
रचने लगते डरावने चेहरे
अपनी भयग्रस्त
सोच के कैनवास पर
चुपचाप देखते हैं बेशर्मी से!
सोच के सामुहिक बलात्कार
चीख चीख कर बताते हैं
सारे नाम अखबार
व्यर्थ सारे प्रतिकार
पहले से ही लिख दी गई है हार
जय सरकार! जय सरकार!!

6 comments:

  1. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (28-4-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  2. gambhir ,sanchetan samvedana ,mukharit ho rahi hai . achha laga ji .dhanyvad .

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  3. जय नवनीत ! जय नवनीत !!
    सुन्दर कविता , लगभग गीत !!

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  4. Bahut hi prabhaavi rachna ... aaj kuch kuch aisa hi samay hai ...

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  5. बहुत सटीक कटाक्ष...

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