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06 January, 2011

मज़ा जो आता है....

हम अपनी कुछ आदतों से
बहुत परेशान हैं
छोडना चाहते हैं उन्हें
पाना चाहते हैं निजात
पूरी तरह उनसे
उस चाय काफ़ी,
खैनी, सिगरेट, दारु की तरह नहीं
जिसे जब चाहा छोड दिया
और जब चाहे
फ़िर से शुरु हो गए
छोडना चाहते हैं ऎसे कि
स्मृति में भी न रहे
कि कोई कहे
हम ऎसे भी रहे
पर कहां हो पाता है
किसी की भी हंसी उडाने
कहीं पर भी टांग अडाने
अपना उल्लू सीधा करने
अंगुली करने में
मज़ा जो आता है.....

2 comments:

  1. नवनीत भाई साब
    प्रणाम !
    कोई भी चीज़ छोड़े के लिए कोई बहना नहीं होता , बस कोई आदत नहीं छोडनी है इसका बहाना चाहिए ,
    सादर

    ReplyDelete

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