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15 December, 2010

सांस अभी बाकी है

पी चुके हैं कितनी ही फ़िर भी
प्यास अभी बाकी है
अमावस्या और पूर्णिमा के बीच
विश्वास अभी बाकी है
झूठी वर्जनाओं से
सन्यास अभी बाकी है
अपनी संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण की
तलाश अभी बाकी है
कुछ रिश्तों में
अहसास अभी बाकी है
कहीं न कहीं कुछ
खास अभी बाकी है
बार बार मारे जाने पर भी
जीने की तलब है
इसीलिए तो ज़िंदगी में
सांस अभी बाकी है

6 comments:

  1. बहुत प्रेरक भावपूर्ण प्रस्तुति...जीने के इस ज़ज्बे को सलाम..

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  2. वाह! जिजीविषा का अमिट हस्ताक्षर इस रचना की सफलता है!

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  3. ... behad prabhaavashaalee rachanaa ... behatreen !!!

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  4. jab tak saansen hain ,
    talaash baki hai....
    bahut badhiya

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  5. बहुत ही सुन्‍दर शब्‍द रचना ।

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  6. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ..

    यहाँ आपका स्वागत है

    गुननाम

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