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21 November, 2010

स्वस्थ नहीं हैं शब्द

कई सालों से
स्वस्थ नहीं हैं शब्द
न जाने किन किन बीमारियों ने
जकड लिया है उनको
अंग्रेजीदां डाक्टर भी आ रहे हैं
अपनी वैश्विक विशेषग्यताओं से लकदक
नई नई विधियों से
शब्दों की शल्य क्रिया किए जा रहे हैं
शब्द तडफ़डा रहे हैं
कुछ भी नहीं कर पा रहे हैं
अपने आपको असहाय पा रहे हैं
होते जा रहे हैं निरीह निष्प्राण
किए जा रहे हैं नित नए परीक्षण
होता जा रहा है उनके अर्थ का क्षरण
जाने और कितना
कब तक सहना होगा
क्या कोई समझ पाएगा शब्दों की पीडा को
या सिर्फ़ मूक दर्शक बन
बस! देखना होगा
आधुनिक शब्द शल्य कर्ताओं की
इस चिकित्सकीय क्रीडा को

2 comments:

  1. शब्दों की पीड़ा को समझने में प्रयासरत है साहित्यजगत ,सुंदर रचना के लिए साधुवाद

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  2. प्रिय बंधुवर नवनीत पाण्डे जी
    नमस्कार !
    आशा है,सपरिवार स्वस्थ-सानन्द होंगे । बीकानेर में बीमारियां फैली हैं अभी। मैं भी चिकनगुनिया की चपेट में आ गया ।

    स्वस्थ नहीं हैं शब्द पढ़ कर मन आहत हो गया ।
    आगे आपने लिखा कि
    न जाने किन किन बीमारियों ने
    जकड़ लिया है उनको
    अंग्रेजीदां डॉक्टर भी आ रहे हैं
    अपनी वैश्विक विशेषज्ञताओं से लकदक
    नई नई विधियों से
    शब्दों की शल्य क्रिया किए जा रहे हैं
    शब्द तड़फड़ा रहे हैं

    ओह ! सचमुच मेरे प्यारे शब्द गंभीर अस्वस्थ लग रहे हैं

    आधुनिक शब्द शल्य कर्ताओं का आसरा छोड़ कर परंपरागत
    चिकित्सकीय क्रीडा की ओर उन्मुख हुआ जाए … ?
    :)
    आधुनिक भावबोध की अच्छी रचना के लिए बधाई !

    शुभकामनाओं सहित
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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