केंद्रीय साहित्य द्वारा घोषित पुरस्कारों में राजस्थानी भाषा हेतु घोषित पुरस्कार विवाद अभी खतम भी नहीं हुआ और हिन्दी ग्रंथ अकादमी द्वारा घोषित पुरस्कारों में धांधली का मामला सामने आ गया है, यह हमारे साहित्य के लिए शुभ संकेत नहीं है. इस तरह पुरस्कार देने और लेने के मायने क्या रह जाते हैं, जब सब कटघरे में हैं.
एक लेखक की पहली प्राथमिकता क्या है? मेरे विचार से लेखन, अपनी पूरी ऊर्जा, प्रतिभा, क्षमता से ईमानदार से लेखन के अलावा कुछ हो ही नहीं सकता. पर न जाने क्यूं आज के अधिकतर लेखकों में यह प्राथमिकता अपवाद स्वरूप ही देखने को ही मिलती है. जैसे कि मैंने पहले भी कहा था आज का लेखन और लेखक प्रदूषित हो गया है और यह प्रदूषण किसकी देन है, बताने की जरूरत नहीं है, सब जानते हैं. आधुनिक भौतिक उपभोक्ता बाजारवाद के इस यु़ग में जहां व्यक्ति स्वयं एक वस्तु होता जा रहा है तो साहित्य उससे कैसे अछूता, बचा रह सकता है? आवश्यकता है तो बस ऐसी स्थिति में एक सच्चे और ईमानदार प्रयास के साथ सदाशयता से लेखक और लेखन को इस प्रदूषण से बचाने की. नित नये प्रायोजित व घोषित होनेवाले पुरस्कारों को पाने की होड ही शायद इसका एक मुख्य कारण है. ऐसे में क्या हमारा नैतिक दायित्व नहीं है कि शब्द की मर्यादा को बचाने के लिए हमें ऎसे कुकृत्यों की निंदा करते हुए ऎसे निर्णयों और निर्णय प्रक्रियाओं की ईमानदारी से खुलकर भर्त्सना करनी चाहिए
जिसे लिखना है, लिखे
छपना है, छपे
बिकना है, बिके
प्रार्थना इतनी भर
आदमियत रहे
आदमी दिखे
केंद्रीय साहित्य द्वारा घोषित पुरस्कारों में राजस्थानी भाषा हेतु घोषित पुरस्कार विवाद अभी खतम भी नहीं हुआ ? भाई आपको ऐसा क्यों लग रहा है कि विवाद अभी बाकी है ? सर्वेक्षण का परिणाम घोषित किया जा चुका है और कहानी चर्चा पर अभी किसी ने कोई टिप्पणी नहीं की है.
ReplyDeleteजिसे लिखना है, लिखे
ReplyDeleteछपना है, छपे
बिकना है, बिके
प्रार्थना इतनी भर
आदमियत रहे
आदमी दिखे!
waah ! kya baat hai .