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22 July, 2011

न कहना..

दबते-दबते
उगना आया
उगते-उगते
पलना
पलते-पलते
फ़लना आया
फ़लते-फ़लते
खिरना

टिप टिप करते
बहना आया
बहते-बहते
झरना
झरते- झरते
झुरना आया
झुरते-झुरते
सहना..

पढते-पढते
लिखना आया
लिखते-लिखते
सीखना
सीखते-सीखते
कहना आया
कहते-कहते
न कहना..

4 comments:

  1. खूबसूरत अभिव्यक्ति

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  2. हर घटना का कारण है, कारण प्रवाहमान है।

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  3. जीवन में ज्ञान के आगमन और शील की व्‍याप्ति की प्रक्रिया का दुर्लभ अंकन... वाह... अद्भुत अभिव्‍यक्ति... बधाई नवनीत जी...

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