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07 July, 2011

दो कविताएं



गाता हूं कविता

लिखते हुए
गाता हूं कविता
रचता हूं राग
साधते हुए
वादी, संवादी और
वर्जित सुर सारे
अपनी ताल में
तुम सुनते हुए
देखना !
मेरा यह शब्द राग
कहीं कुछ छूट तो नहीं गया?
सुनना-देखना होते हुए



कहां बचे हैं वे शब्द

शब्द
बीज होना चाहते हैं
उगाना चाहते हैं पेड़
कविताओं के
पर कहां बचे हैं
वे शब्द
जो बनें बीज
उगाए पेड़ कविताओं के

3 comments:

  1. पर कहां बचे हैं
    वे शब्द
    जो बनें बीज
    उगाए पेड़ कविताओं के


    बहुत अच्छी प्रस्तुति ... दोनों रचनाएँ अच्छी लगीं

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  2. गाकर लिखना, कहकर लिखना अच्छा लगता है।

    ReplyDelete
  3. आपकी ३० जून की पोस्ट बेहद पसंद आई. कवि को या कहें कि रचनाकार को वरदान में सूरज की पहली किरण के साथ वेदना मिलती है.जिस दिन नहीं मिलती वह लिख नहीं पाता.
    अगर लिखता है तो वह उसका झूठ होता है. हम सबने इस वरदान की भीक्षा मांगी है.कतरों को टपकने दो यही जिंदगी का सौंदर्य है. बहुत सुन्दर.

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