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26 January, 2011

पिंजरे में दुबारा

उसने सचमुच ही कर लिया किनारा
दिल फ़िर हो गया मारा मारा
उसको क्या कहें और क्यूं
दिल का ही तो था कसूर है सारा

कोशिशें तो बहुत की बचाने की
फ़िर भी तिनका तिनका हो गया सारा
उम्र बीत जाएगी शायद अब झुलस में
जाने कब मिलेगा छांव का सहारा

जाने कैसा रिश्ता है कैसा ये लगाव
क्या ये किस्सा क्या ये नज़ारा
उसने तो किया था परिंदा आजाद
फ़िर भी आ बैठा पिंजरे में दुबारा

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