घर-१
पहले था
एक खुला द्वार
सबके लिए
द्वार के पार
घर की बैठक
बैठक के पार
आंगन
आंगन के पार
भरा पूरा घर
अब-
एक कालबेल है
एक दरवाजा
दरवाजे के पार
ड्राईंग रूम
ड्राईंग रूम में
कई तरह की पेंटिंग्स
फ़िर लॉबी
जिसमें होती है
लॉबिंग
घर के खिलाफ़
घर-२
जहां खड़े हो
वह फ़र्श नहीं छत है
नीचे वाले की
जिसे तुम छत समझ रहे हो
वह फ़र्श है ऊपर वाले का
हंसने की बात नहीं है
यह महानगर है
यहां जो दिखता है
वह होता नहीं
जो होता है
दिखता नहीं
बिल्कुल सटीक ...
ReplyDeleteसच्ची अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteचर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 05 - 04 - 2011
ReplyDeleteको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.blogspot.com/
बहुत उम्दा!!
ReplyDeleteसही विश्लेषण ,बधाई
ReplyDeleteबिल्कुल सही बात कही है………सटीक चित्रण्।
ReplyDeletekhubshurat abhivyakti..:)
ReplyDeleteबहुत सटीक विश्लेषण
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