एक
उल्टे सीधे नम्बर बोलता है
जुआरी लगता है
मजमा लगाए बैठा है
मदारी लगता है
सबको सलाम ठोकता है
दरबारी लगता है
ईश्वर को गाली देता है
भिखारी लगता है
दो
अपना ही चेहरा भूल जाता है
नित नए आईने आजमाता है
हरेक पर अंगुली उठाता है
बाकी किधर है, भूल जाता है
होश की बात करे भी तो कैसे
बस थोड़ी में ही बहक जाता है
कैसी फ़ितरत बना ली है अपनी
देखने, सुननेवालों को तरस आता है
छोटी बहर में ग़ज़ल कहना बहुत कठिन काम है और इसे आपने बहुत ख़ूबसूरती से अंजाम दिया है...मेरी दाद कबूल करें...
ReplyDeleteनीरज