मैं कब कहता हूं,मेरा लिखा कविता है, गज़ल है
लिखने की है हूंस, लिखना मेरा शगल है
मैंने कब कहा, पढना मुझे तुम
फ़िर भी तुमने पढा, मेरा लिखना सफ़ल है
प्रेम है पड़ोसियों से पर रहे अपने घर में
क्यूं तकें पड़ोसियों को, हमारा घर भी तो महल है
आती ही नहीं कलमबंदी, न ही बंधा किसी बाड़े में
अनुभूत बीज बोया कलम हल ने, वही मेरे खेत की फ़सल है
अनुभूत बीज बोया कलम हल ने, वही मेरे खेत की फ़सल है
ReplyDeleteबहुत खूब ...