पहचानते हैं चोरों को पकड़ नहीं सकते
मजबूरी है राजा को नंगा, कह नहीं सकते
जानते हैं जगह जगह से, टपकती है छत
रेत की सीमेण्ट से, गढ्ढे भर नहीं सकते
नीम हकीमों के हाथों में, नब्ज़ इस वक्त की
इनके दिए जहर, दवा बन नहीं सकते
भौंकनेवालों को मिल जाते हैं टुकड़े
पालतू हो जाते हैं, फ़िर भौंक नहीं सकते
चोरों को पकड़नेवाले ही जब चोर हैं
चोरों के घर चोर, चोरी कर नहीं सकते
बैसाखियों पर राज, बैसाखियों पर देश
बिन बैसाखी चंद कदम, चल नहीं सकते
हर उम्मीद बेमानी हर मंजिल है दूर
अपने ही फ़न, हम कुचल नहीं सकते
भौंकनेवालों को मिल जाते हैं टुकड़े
ReplyDeleteपालतू हो जाते हैं, फ़िर भौंक नहीं सकते
सटीक बात ...अच्छी गज़ल
वाह जनाब बहुत खूब लिखा ..........
ReplyDelete