कवि का मन
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03 March, 2011
दिन
दिन
कई दिनों से उदास है
सुबह से शाम तक
दिन
दिनभर अकेला
किसी से नहीं मिलता
किसी से नहीं बोलता
चुपचाप...
उगता,
अपनी ही रौ में
चलता, जलता
चुपचाप...
ढलता
3 comments:
devendra gautam
4/3/11 8:43 AM
बहुत खूब!....मुबारक हो!
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रश्मि प्रभा...
4/3/11 9:25 AM
yahi zindagi hai....
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सदा
4/3/11 3:42 PM
बेहतरीन प्रस्तुति ।
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बहुत खूब!....मुबारक हो!
ReplyDeleteyahi zindagi hai....
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति ।
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