इन रेतीले धोरों पर
बहती रेतीली हवा
मिटा रही है
मेरे कदमों के निशान
फ़िर भी चला जा रहा हूं
अपनी राह
नहीं कहीं कोई छांह
दूर दूर तक बिछी
रेत ही रेत
अथाह
सांवलिया रंग
सांवलिया अंग
रेत के खेत
रेत का समंदर
बाहर रेत
रेत ही अंदर
लिखूं रेत
बांचूं रेत
अरोगूं रेत
बांटू रेत
रेत में मैं
मुझ में रेत
सुन्दर रचना।
ReplyDelete