हवा जब भागती है
सिर्फ़ हवा ही नहीं
कई चीजें भागती है
एक समर्पण के साथ
हवा के साथ-साथ
हवा
हिला देती है
उखाड़ देती है
मजबूत जड़ें
खड़े
हो जाते पल भर में
पड़े..
अंधी, बहरी
और दिशाहीन
होती है हवाएं
कोई नहीं चीन्ह पाया
हवाओं के रुख
कब, कौन, कहां
कह पाया
हवाओं से
रुक..!
इस नज़्म को पढ़कर अपना एक शेर याद आ गया
ReplyDeleteरुख हवाओं का बदलना है हमीं को लेकिन
पहले आते हुए तूफां को गुजर जाने दे .
---देवेंद्र गौतम