मैं जो कहूंगी
तुम सुनोगे नहीं
मेरा किया तुम्हें
जचेगा नहीं
बात वहीं की वहीं
तुम कहीं मैं कहीं
करना तो आखिर वही होगा न!
जो तुम कहोगे
और हमेशा तुम ही तो कहते हो
मेरा हक तो
इतना भर रहा
करूं हमेशा तुम्हारा कहा
तुम मुझे सहते हो
मैंने तुम्हें सहा
बस यही तो अब
हमारे बीच रहा!!
सटीक रचना
ReplyDeleteमानवीय रिश्तों को बारीकी से उधेडा है आपने...
ReplyDeleteनीरज