नहीं समझे!
समझेंगे भी नहीं
क्यूंकि यह
राग देश नहीं
राग विदेश है
इसमें कोमल,शीतल प्रपात नहीं
दहकते अंगारे, धधकती आग है
क्या राग है....
नहीं किसी सप्तक में
इसके सुर
समझ से बाहर हैं
इसकी खूबी और गुर
इसकी हर ताल है
बेताल
लेकिन फ़िर भी बचाए है
धमाल
दीवाना बनाएं हैं
हर किसी को
जिसे देखो गाता(चिल्लाता) मिलेगा इसी को
इसी के रंग में रंग जाओ
सब गाओ!
अपने गले तराश कर
क्यूंकि-
इसी में तो छुपे हैं भविष्य के
सारे आस्कर.....
अंतिम पंक्तियाँ दिमाग पर असर करती है सुंदर रचना
ReplyDelete