हे ईश्वर!
लोग कहते हैं
तुम सब देखते हो
कुछ नहीं छिपा तुम से
मैं बचपन से ही
देखता आया हूं तुझे
पर क्या तुमने भी कभी
देखा मुझे?
पता नहीं
किसने थमायी थी
मेरी अंगुली, तुझे
उस भूल ने आज तक
नहीं जीने दिया चैन से मुझे
मैंने कभी, कहीं नहीं देखा तुझे
पर देखता आया हूं
तुम्हारे ठाठबाट और मज़े
हर दिन सजेधजे
सबको पजाए रहते हो
पर खुद!!
खुद आज तक कहीं नहीं पजे
'असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्योर्मा अमृतं गमय ' यानी कि असत्य की ओर नहीं सत्य की ओर, अंधकार नहीं प्रकाश की ओर, मृत्यु नहीं अमृतत्व की ओर बढ़ो ।
ReplyDeleteदीप-पर्व की आपको ढेर सारी बधाइयाँ एवं शुभकामनाएं ! आपका - अशोक बजाज रायपुर
ग्राम-चौपाल में आपका स्वागत है
http://www.ashokbajaj.com/2010/11/blog-post_06.html
iswar se samvad karti si bholi si bhali si kavita!
ReplyDeleteregards,
laga jaise kisi bachche ko padh rahi hun, apni yah rachna rasprabha@gmail.com par bhejiye parichay, tasweer, blog link ke saath 'vatvriksh ke liye
ReplyDeletehttp://urvija.parikalpnaa.com/
is rachna mein kitni masumiyat hai
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